शिवपुरी और सीतापुर में शिक्षक निर्धारित समय से पहले स्कूल बंद, ग्रामीणों में गुस्सा
दोपहर 2:30 बजे फोन आते ही शिक्षक अखिलेश साहू और हरिराम जाटव ने स्वीकार कर लिया — स्कूल बंद हो चुका है, वे घर लौट रहे हैं। यह घटना शिवपुरी के एक सरकारी स्कूल में हुई, जहां बच्चों की पढ़ाई का समय शिक्षकों की इच्छा पर टिका है। इसी तरह, सीतापुर में एक स्कूल दोपहर 1:18 बजे बंद हो गया, जबकि बच्चे अभी भी कक्षा में बैठे थे। ये घटनाएं अकेली नहीं हैं। ये उस बड़ी बीमारी के लक्षण हैं, जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के ग्रामीण स्कूलों को धीरे-धीरे खा रही है।
समय के बजाय शिक्षक की इच्छा
नैडूनिया की रिपोर्ट के मुताबिक, शिवपुरी के शिक्षकों ने स्कूल बंद करने का बहाना बनाया — "प्रधानाध्यापक ने अनुमति दे दी"। लेकिन जब अभिभावकों ने पूछा कि क्या यह नियम के अनुसार है, तो जवाब आया — "अभी तो दोपहर हुई है, बच्चे थक गए हैं।" यही बात सीतापुर में भी दोहराई गई। अमर उजाला की 16 सितंबर 2025 की रिपोर्ट में एक ग्रामीण ने कहा, "हम रोज सुबह 7 बजे बच्चों को स्कूल छोड़ते हैं, लेकिन दोपहर 1 बजे तक वे बैठे रहते हैं, फिर दरवाजा बंद।"
एक अभिभावक की बात सच्चाई को छूती है: "हम नहीं जानते कि आज स्कूल खुलेगा या नहीं। अगर खुला भी, तो कितनी देर तक?" इस अनिश्चितता के कारण, बीकेटी लखनऊ के एक स्कूल में 27 बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी। उनका स्कूल बुधवार को सुबह 10 बजे ताले से बंद था। बच्चे दो किलोमीटर दूर रहते हैं। कोई बस नहीं। कोई अधिकारी नहीं। केवल एक ताला।
27,000 स्कूलों का विलय: नीति या निराशा?
ये घटनाएं उत्तर प्रदेश की बड़ी योजना के संदर्भ में आ रही हैं — 27,000 से अधिक सरकारी स्कूलों को विलय करने की योजना। यह बात YouTube वीडियो में भी चर्चा हुई, जिसमें बताया गया कि इसका कारण है: निम्न नामांकन, भवनों का टूटना, और शिक्षकों की कमी। लेकिन विलय का नाम लेकर जब शिक्षकों को बंद कर दिया जाता है, तो वह नीति नहीं, अनदेखा है।
1,35,000 सहायक शिक्षक और शिक्षामित्र इस योजना के निशाने पर हैं। उनमें से कई अब घर पर बैठे हैं — नौकरी तो है, लेकिन काम नहीं। कुछ ने दूसरी नौकरी ढूंढ ली। कुछ बच्चों को घर पर पढ़ाने लगे। लेकिन जिन बच्चों के पास घर में कोई पढ़ाने वाला नहीं, वे कहां जाएंगे?
निगरानी कहाँ है?
शिक्षा विभाग का दावा है कि वे "नियमित निगरानी" कर रहे हैं। लेकिन अगर शिक्षक दोपहर 2:30 बजे स्कूल छोड़ रहे हैं, और उन्हें फोन करने पर वे सीधे स्वीकार कर लेते हैं — तो निगरानी कहाँ है? क्या यह एक गलती है? या यह एक नियम है?
एक शिक्षा विशेषज्ञ ने बताया, "हमने 2023 में डिजिटल उपस्थिति सिस्टम लगाया था। लेकिन उसका इस्तेमाल केवल रिपोर्ट बनाने के लिए हो रहा है। असली उपस्थिति कोई नहीं देख रहा।" शिवपुरी में भी एक शिक्षक ने बताया, "हम बिना बुकिंग के घर जाते हैं। कोई पूछता नहीं। अगर पूछता भी, तो बोल देते हैं — बीमारी या फैमिली इमरजेंसी।"
शिक्षा का अंतिम दर्द
यह सिर्फ शिक्षकों की अनियमितता नहीं है। यह एक सिस्टम की मौत है।
जब एक बच्चा रोज 6 घंटे बाहर रहकर आता है, और स्कूल दोपहर 1:18 बजे बंद हो जाता है — तो वह बच्चा सिर्फ पढ़ाई नहीं छोड़ता। वह विश्वास छोड़ देता है। विश्वास कि सरकार उसके भविष्य के लिए कुछ करेगी।
कुछ गांवों में अभिभावकों ने स्वयं कक्षाएं चलानी शुरू कर दी हैं। एक गांव में एक ग्रामीण ने अपना घर बदल दिया — बच्चों के लिए एक शिक्षा केंद्र। उसके पास किताबें नहीं हैं। बस एक बोर्ड, एक चॉक, और उसका दिल।
क्या अगला कदम है?
शिक्षा विभाग का दावा है कि अगले महीने एक नई नीति घोषित की जाएगी। लेकिन अगर नीति केवल फाइलों में रह जाए, तो यह क्या फायदा? बच्चे फाइल नहीं हैं। वे इंसान हैं।
हमें यह नहीं चाहिए कि शिक्षा का अधिकार शिक्षक की इच्छा पर टिका रहे। हमें चाहिए — एक नियम, एक जिम्मेदारी, और एक अनुशासन।
शिवपुरी और सीतापुर की घटनाएं अभी भी छोटी लग सकती हैं। लेकिन ये आग की छोटी लौ हैं। अगर इन्हें बुझाया नहीं गया, तो यह आग एक पूरे शिक्षा प्रणाली को जला देगी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
शिवपुरी और सीतापुर में शिक्षकों की अनियमितता क्यों बढ़ रही है?
शिक्षकों की अनियमितता बढ़ रही है क्योंकि निगरानी का कोई प्रभावी तंत्र नहीं है। डिजिटल उपस्थिति सिस्टम का इस्तेमाल केवल रिपोर्ट बनाने के लिए हो रहा है। शिक्षकों को नौकरी का आश्वासन मिला हुआ है, लेकिन जिम्मेदारी का कोई बोझ नहीं। इसलिए वे नियमों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
27,000 स्कूलों के विलय से बच्चों को क्या नुकसान हो रहा है?
विलय के नाम पर स्कूल बंद किए जा रहे हैं, लेकिन नए स्कूल बन रहे नहीं। बच्चों को 5-10 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है, जिसके लिए बस या ट्रांसपोर्ट नहीं है। इससे बच्चे पढ़ाई छोड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 2024-25 में 3.7 लाख बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं — जिसमें से 68% ग्रामीण क्षेत्रों से हैं।
क्या शिक्षा विभाग ने इन घटनाओं पर कोई कार्रवाई की है?
तकनीकी तौर पर हाँ — कुछ शिक्षकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है। लेकिन इनमें से ज्यादातर केस दर्ज होते हैं, लेकिन कभी सुनवाई नहीं होती। शिवपुरी में 2024 में 112 शिक्षकों के खिलाफ शिकायतें दर्ज हुईं, लेकिन केवल 3 के खिलाफ अंतिम कार्रवाई हुई।
ग्रामीण अभिभावक क्या कर सकते हैं?
अभिभावक अपने स्कूल के शिक्षकों की उपस्थिति का डिजिटल रिकॉर्ड बना सकते हैं — फोटो, वीडियो, टाइम स्टैम्प। उन्हें जिला शिक्षा अधिकारी और स्थानीय विधायक को भेजना चाहिए। कुछ गांवों में यही काम कर रहा है। बीकेटी लखनऊ में अभिभावकों ने 15 दिन में 87 फोटो भेजे — तब तक शिक्षक ने स्कूल नहीं छोड़ा।
क्या यह सिर्फ उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की समस्या है?
नहीं। बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में भी इसी तरह की घटनाएं रिपोर्ट हो रही हैं। नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 के बाद भी, शिक्षा विभागों ने निगरानी के लिए बजट नहीं बढ़ाया। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के 42% सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की औसत उपस्थिति मात्र 58% है।
इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है?
तीन चीजें जरूरी हैं: पहला, शिक्षकों की उपस्थिति को वास्तविक समय में ट्रैक करने के लिए बिना फोन के ऑटोमेटेड सिस्टम। दूसरा, अगर शिक्षक 3 दिन लगातार नहीं आता, तो उसकी तनख्वाह रोक दी जाए। तीसरा, ग्रामीण अभिभावकों को शिक्षा प्रबंधन समिति में शामिल किया जाए — जिससे वे निर्णय लेने में भाग ले सकें।