स्वामी चैतन्यनंद सरस्वती पर 17 छात्राओं के यौन उत्पीड़न के आरोप, पुलिस ने जारी किया मैनहंट

अभियोजन का विवरण और संदेहग्रस्त कार्य
स्वामी चैतन्यनंद सरस्वती, जिनका असली नाम पार्थ सरथि है और जन्म ओडिशा में हुआ था, को दिल्ली के वसंत कुंज में स्थित शारदा इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडियन मैनेजमेंट का पूर्व निदेशक बताया जाता है। अगस्त 2025 में दायर हुई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के मुताबिक, 52 वर्षीय इस आध्यात्मिक नेता पर 17 महिला छात्रों द्वारा यौन उत्पीड़न, ठगी, दस्तावेज़ जालसाजी और अपने प्रभाव का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है।
शिकायतों में बताया गया है कि सरस्वती ने छात्रों को आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से होने के कारण शोषण किया। कई छात्राएँ ईडब्ल्यूएस स्कॉलरशिप कार्यक्रम के तहत पढ़ाई कर रही थीं, फिर भी उन्हें "मैं तुम्हें विदेश ले जाऊँगा, बिलकुल मुफ्त" जैसे वादे करके बंधक बनाया गया। जब छात्राएँ इस प्रकार के वादे स्वीकार नहीं करतीं, तो "अगर तुम मेरे आदेश नहीं मानोगी तो मैं तुम्हें फेल कर दूँगा" जैसे घातक धमकियाँ दी गईं।
पुलिस को प्रदान किए गए व्हाट्सएप चैट्स में स्वामी के शब्दों में कई अनैतिक अभिव्यक्तियाँ मिलती हैं – "बेबी", "आई लव यू", "आई ऐडोर यू" जैसी शब्दावली के साथ छात्रों के बाल, कपड़े और शारीरिक रूप की भी टिप्पणी की गई। एक छात्रा ने बताया कि वह अक्टूबर 2024 में दाखिला लेकर दीवाली के पहले दिन ही सरस्वती के कमरे में बुला ली गई, जहाँ उसे अजीब तरह का डरावना व्यवहार झेलना पड़ा।
FIR में यह भी लिखा है कि सरस्वती ने महिला हॉस्टल में छुपी कैमरे लगवाए थे तथा रात देर तक छात्रों को अपने कमरे में रखने की कोशिश की। कुछ मामलों में, इसने छात्रों को विदेश यात्रा पर ले जाने का झूठा वादा किया और उनकी सहमति के बिना उनका नाम बदलने तक की बात कही। कई पीड़ितों ने बताया कि उन्हें अपने मोबाइल पर मौजूद साक्ष्य को हटाने के लिए दबाव दिया गया, जबकि हॉस्टल के स्टाफ और वार्डन भी इस प्रक्रिया में सहयोगी बने।

पुलिस और राष्ट्रीय महिला आयोग की कार्यवाही
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने इस मामले को अपना स्वयंस्फूर्त ध्यान (सुओ मोटु) दिया और अध्यक्ष विजय राहितकर ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को लिखित आदेश जारी किया, जिसमें सरस्वती की तत्काल गिरफ्तारी का आग्रह किया गया। आयोग ने साथ ही पीड़ित छात्राओं को सुरक्षा, काउंसिलिंग और न्याय प्रक्रिया की तेज़ गति से आगे बढ़ाने की मांग की। तीन दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट देने का निर्देश भी दिया गया।
संपूर्ण पुलिस बल ने कई अंकुश टुकड़े बनाकर सरस्वती को पकड़ने की कोशिश की। स्रोतों के अनुसार, वह अब तक आगरा के पास आखिरी बार देखे गए थे, पर लगातार स्थान बदलते रहने, फोन कम उपयोग करने और डिजिटल साक्ष्य को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी प्रत्याशित जमानत याचिक़ा को पुलिस ने कड़ा विरोध किया और याचिक़ा को वापस ले लिया गया।
जांच में अब तक कई तकनीकी कदम उठाए गए हैं – पीड़ितों के फ़ोनों से डिलीट किए गए डेटा को पुनः प्राप्त करने की प्रक्रिया चल रही है, जबकि हॉस्टल और सरस्वती के निजी आवासों की सीसीटीवी फुटेज को भी सावधानीपूर्वक जांचा जा रहा है। साथ ही, दो स्वतंत्र विशेषज्ञों को भी लगाए गए कैमरों की पहचान और उनके कार्य की गहराई जांचने के लिए बुलाया गया है।
सिरिंगा, कर्नाटक में स्थित श्री श्री जगदगुरु शंकराचार्य महासंस्थान डाक्खिनाम्नय श्री शारदा पीठ ने भी इस संस्थान से अपने सभी संबंध तोड़ दिए हैं। उन्होंने जारी किए एक बयान में कहा कि सरस्वती की क्रियाएँ न केवल गैरकानूनी बल्कि पीठ की मूल मान्यताओं के बिलकुल विरुद्ध हैं। इस कदम से यह स्पष्ट होता है कि आध्यात्मिक संस्थानों में भी शक्ति का दुरुपयोग कैसे हो सकता है और इसे रोकने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।
समाज में इस प्रकार के मामलों पर अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को ऐसे शोषण के जोखिम से बचाने के लिए पर्याप्त सुरक्षा मैकेनिज़्म मौजूद हैं। इस मामले ने शैक्षणिक संस्थानों में सुरक्षा मानकों को कड़ाई से लागू करने, छात्रों के लिए स्पष्ट शिकायत प्रक्रिया स्थापित करने और डिजिटल प्राइवेसी को सुरक्षित रखने की मांग बढ़ा दी है।
जैसा कि जांच आगे बढ़ रही है, नई साक्ष्य और गवाहों के बयान लगातार सामने आ रहे हैं। स्वामी चैतन्यनंद सरस्वती के शत्रु-समर्थक दोनों ही गुट इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा मान रहे हैं, जो आध्यात्मिक नेताओं की ताकत और उनके शिकार बनने वाले संवेदनशील वर्ग के बीच की नाज़ुक संतुलन को उजागर करता है।
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