वैशाख पूर्णिमा 2025, 12 मई को मनाई जाएगी। यह दिन हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के लिए बेहद खास है। उपवास, दान और सत्यानारायण व्रत जैसी धार्मिक गतिविधियाँ इस दिन की जाती हैं। गौतम बुद्ध के जन्मदिवस के रूप में भी बौद्ध समुदाय इसे बड़ी श्रद्धा से मनाता है।
वैशाख पौराणिक पावन: वैशाख पूर्णिमा 2025 की पूरी जानकारी
क्या आप जानते हैं कि हर साल अप्रैल‑मई में आने वाला पूरा चाँद कई धर्मों में खास माना जाता है? इस दिन को वैशाख पूर्णिमा कहा जाता है और यह भारत के बहुत से हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। अगर आपके पास अभी तक इस त्यौहार की पूरी समझ नहीं है, तो यहाँ सभी जरूरी बातें एक ही जगह पढ़ सकते हैं—इतिहास से लेकर घर‑घर में करने वाले रीति‑रिवाज़ तक, और साथ ही कुछ आसान पर्यावरणीय कदम भी।
वैशाख पूर्णिमा का इतिहास और सांस्कृतिक महत्त्व
वर्ष के पहले महीने वैशाख में जब चाँद पूरा होता है, तो उसे कई नामों से पुकारा जाता है—बुद्ध पूर्णिमा, गुरुपुजा, या बस वैशाख पूर्णिमा। बौद्ध धर्म में इसे बुद्ध की जन्म‑उपदेश‑परिणिर्माण के रूप में मानते हैं, इसलिए इस दिन धम्म मंडलियों में धूप जलाकर ध्यान लगाया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे सूर्य के नए साल और कृषि का शुरुआत माना जाता है; किसान लोग नई फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं।
पुराने ग्रंथों में कहा गया है कि वैशाख पौराणिक कथा के अनुसार, इस दिन रावण ने सीता को बचाया था और कई राजाओं ने अपने राजा‑राज्य की शान्ति का वादा किया था। यही कारण है कि इस दिन परम्परागत रूप से लोग एक-दूसरे को मिठाइयाँ बाँटते हैं और सामाजिक मेलजोल बढ़ाते हैं।
आज कैसे मनाएं वैशाख पूर्णिमा और पर्यावरण बचाएँ
सबसे पहले तो घर में साफ‑सफाई कर लीजिए, फिर पूजा स्थल को हल्का रंग के कपड़े से सजाइए। एक छोटी सी मिट्टी की थाली में फूल, फल और दीया रखें—इन्हें जलाने से रात्रि प्रकाश का माहौल बनता है। यदि आप बौद्ध समुदाय से जुड़े हैं तो धूप‑दीप जलाकर शांति मंत्र पढ़ सकते हैं; हिन्दू परिवारों के लिये गीता या रामायण की छोटी-छोटी कहानी सुनना भी अच्छा रहता है।
अब बात करते हैं पर्यावरणीय टिप्स की—प्लास्टिक कपड़े से बचें, कागज़ और लकड़ी के बने थाली‑बर्तन चुनें। पूजा के बाद अगर फूल बचे हों तो उन्हें कंपोस्ट में डाल दें या स्थानीय पेड़‑लगाने वाले कार्यक्रम में दे दें। वैशाख पौराणिक का एक लोकप्रिय भाग है ‘वृक्षारोपण’—आप अपने घर के आंगन में एक छोटा पौधा लगा सकते हैं, यह न केवल धरती को हरित बनाता है बल्कि भविष्य की पीढ़ी को शुद्ध हवा भी देता है।
यदि आप शहर में रहते हैं तो सामुदायिक स्थल पर आयोजित वैशाख पौराणिक उत्सव में भाग लें। अक्सर वहाँ ‘साफ‑सफाई अभियान’ या ‘प्लास्टिक मुक्त महोत्सव’ आयोजित होते हैं—इनमें हिस्सा लेकर आप अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक कर सकते हैं। छोटे-छोटे कदम, जैसे कि एक लाइट बंद करना या गाड़ी की जगह साइकिल चलाना, इस पावन दिन को और खास बना देता है।
तो अगली बार जब वैशाख पूर्णिमा आए, तो सिर्फ मिठाई‑मसालों में नहीं, बल्कि अपने दिल और धरती दोनों को खुश करने वाले कार्यों से इसे मनाएँ। आप चाहे धूप जलाएं, फूल चढ़ाए या पेड़ लगाएँ—हर काम का असर बड़ा है। याद रखें, सच्ची पूजा वही है जो इंसान को अंदर से शुद्ध करे और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखे।