गुरमीत राम रहीम की बरी पर सवाल उठाते हुए चरणजीत सिंह चन्नी ने चुनावी राजनीति पर साधा निशाना
गुरमीत राम रहीम की बरी पर चरणजीत सिंह चन्नी का बयान
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और काँग्रेस नेता चरणजीत सिंह चन्नी ने हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए एक फैसले के बाद राजनीतिक सरगर्मी पैदा कर दी। यह फैसला डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को 2002 के रंजीत सिंह हत्या मामले में बरी करने का था। चन्नी ने इस फैसले पर गहरी असहमति जताते हुए इसे गंभीर सवालों के घेरे में ला दिया।
चुनावी राजनीति का सवाल
चन्नी ने अपने बयान में इस बात पर जोर दिया कि वे अदालती फैसले पर टिप्पणी नहीं करना चाहते लेकिन उन्होंने भाजपा की योजनाओं पर कड़ा हमला बोला। उन्होंने पूछा कि आखिर क्यों गुरमीत राम रहीम को हर बार चुनाव के आसपास ही कुछ खास राहत मिलती है। यह सवाल ना केवल राजनीतिक दलों बल्कि आम जनता के बीच भी विवाद का विषय बना हुआ है।
दरअसल, इस मामले को लेकर सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भारी गहमागहमी का माहौल है। हर कोई यह जानना चाहता है कि क्यों राम रहीम को बार-बार चुनाव के समय कोई न कोई राहत मिल जाती है।
परिवारों का दर्द और संघर्ष
रंजीत सिंह के परिवार ने उच्च न्यायालय के इस फैसले पर निराशा जाहिर की है। रंजीत सिंह के भाई-बहन, प्रभु दयाल ने कहा कि वे इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं और न्याय की लड़ाई सर्वोच्च न्यायालय में जारी रखने का संकल्प जताया। उनके अनुसार, यह निर्णय न्याय की मूल भावना के खिलाफ है और उन्हें इस मामले में उच्च न्यायालय के फैसले से बेहद दुख हुआ है।
प्रभु दयाल का कहना है कि वे किसी भी हालत में न्याय प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते रहेंगे। वे चाहते हैं कि रंजीत सिंह के हत्या के मामले में दोषियों को सजा मिले और न्यायपालिका उनके साथ खड़ी हो।
अन्य मामलों का प्रभाव और संवाद
राम चंद्र छत्रपति के बेटे, अंशुल छत्रपति ने भी इस फैसले पर निराशा व्यक्त की है। उन्होंने इसे न्याय के साथ खिलवाड़ बताया और कहा कि इस निर्णय ने न केवल परिवारों बल्कि अन्य संबंधित मामलों को भी प्रभावित किया है। अंशुल छत्रपति ने हवाला दिया कि गुरमीत राम रहीम के खिलाफ अन्य कई मामले भी लंबित हैं, जिनमें यौन शोषण और हत्या के भी मामले शामिल हैं। इन सभी मामलों को जोड़कर देखने की आवश्यकता है और इस तरह के फैसले न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
सीबीआई कोर्ट का पिछला फैसला
गौरतलब है कि इस मामले में एक सीबीआई अदालत ने पहले गुरमीत राम रहीम और अन्य आरोपियों को दोषी ठहराया था। परंतु उच्च न्यायालय ने अब उस फैसले को उलट दिया है, जो ना सिर्फ कानूनी विशेषज्ञों बल्कि आम जनता के लिए भी एक बड़ा सवाल है।
गहराती राजनीतिक ध्रुवीकरण
इस मामले का राजनीतिक ध्रुवीकरण भी साफ दिखाई दे रहा है। चन्नी के बयान ने विपक्ष को एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुद्दा दे दिया है। जहां एक तरफ चन्नी ने भाजपा पर सीधा हमला बोला, वहीं दूसरी ओर आम जनता और राजनीतिक जानकारों ने इसे न्याय के रख-रखाव पर गहरा संकट मानते हुए चिंता जाहिर की है।
इस घटना ने राजनीतिक मंच पर एक नई बहस छेड़ दी है। अब देखना होगा कि इस मसले पर आगे क्या रणनीति अपनाई जाती है और न्याय की प्रक्रिया कैसे कार्यान्वित होती है।
न्यायिक प्रक्रिया और सामाजिक प्रभाव
कुल मिलाकर, इस फैसले ने न केवल न्याय प्रणाली पर सवाल उठाए हैं बल्कि समाज के विभिन्न तबकों में एक नया संचार भी स्थापित किया है। जनता अब अधिक सजग होकर इस मामले को देख रही है और न्याय की मांग कर रही है।
अब सभी की नजरें शीर्ष न्यायालय पर टिकी हैं, जहां परिवारों ने न्याय की आखिरी उम्मीद से अपनी अपील दायर की है। देखना यह होगा कि न्यायिक प्रक्रिया इस दिशा में कैसे आगे बढ़ती है और जनता की उम्मीदों पर कितनी खरा उतरती है।
इस पूरे मामले के हर पहलू पर गौर करना आवश्यक है ताकि न्याय के सर्वोच्च मापदंडों को स्थापित किया जा सके। उम्मीद जताई जा रही है कि शीर्ष न्यायालय इस फैसले पर फिर से विचार करेगा और सही निर्णय पर पहुंचेगा।
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