IMD ने मुंबई में भारी बारिश का पीला अलर्ट जारी किया, जबकि दिल्ली में मानसून की देरी जारी है। दक्षिण, उत्तर और पहाड़ी क्षेत्रों की विस्तृत मौसम जानकारी पढ़ें।
मनसून: भारत के मौसम का प्रमुख अध्याय
जब हम मनसून, जून‑सितंबर के बीच भारत में लाकर भारी वर्षा वाला मौसम, वसंत की बात करते हैं, तो तुरंत बारिश, वायुमंडल से जल की बूंदों का धरती पर गिरना याद आती है। यह दो‑तीन शब्द सिर्फ जल नहीं, बल्कि कृषि, जलस्रोत और बुनियादी जीवन‑शैली को जोड़ते हैं। आसान शब्दों में कहें तो, मनसून वह प्राकृतिक प्रक्रिया है जो भारत के कृषि‑चक्र को चालू करती है और साथ ही बाढ़‑जोखिम भी बढ़ा देती है।
मनसून की ताकत को समझने के लिए बाढ़, भारी बारिश के बाद नदी‑नालों के ओवरफ़्लो से उत्पन्न जल‑प्रवाह को देखना जरूरी है। हर साल बाढ़ की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि मोनसून कितनी देर तक लगातार बरसता है और किन क्षेत्रों में दबाव अधिक रहता है। पिछले सालों की आँकड़े दिखाते हैं कि जब IMD, इंडियन मेटीयोरॉलॉजिकल डिपार्टमेंट, जो मौसम के सटीक पूर्वानुमान देता है ने धुंध और कम बरसात की सूचना दी, तो बाढ़ के मामले कम रहे। इसलिए मौसम विज्ञानी और स्थानीय प्रशासन दोनों को IMD के अपडेट पर नज़र रखनी चाहिए।
बारिश के पैटर्न का सीधे असर कृषि, फ़सल उत्पादन और किसान‑जीवन का मुख्य आधार पर पड़ता है। धान की खेती को पर्याप्त जल की जरूरत होती है, जबकि ज्वार‑बाजरा जैसी सूखा‑सहनशील फसलें मौसम की तरलता को समायोजित करती हैं। जब मानसून समय पर और समान रूप से बरसता है, तो किसान अच्छे उत्पादन की उम्मीद रख सकते हैं; लेकिन असमान वितरण से फसल को नुकसान और आर्थिक दबाव बढ़ता है। इस कारण, कई किसानों ने अब सटीक मौसम‑डेटा के आधार पर बीज चयन और सिंचाई के तरीके अपनाए हैं।
मनसून की अवधि में एक और महत्वपूर्ण पहलू धुंध, पानी के कणों की सूक्ष्म बूंदें जो हवा में निलंबित रहती हैं है। धुंध न केवल दृश्यता घटाती है, बल्कि कुछ क्षेत्रों में प्रत्यक्ष वर्षा को भी कम कर देती है, जिससे निचले इलाकों में जल‑संकट बढ़ सकता है। 22 सितंबर के IMD अपडेट में कहा गया था कि बिहार में धुंध प्रमुख रही, जबकि बारिश की संभावना घट गई। इस तरह के स्थानीय बदलावों को समझकर शहरी जल‑प्रबंधन योजना बनाना आसान हो जाता है।
मनसून के दौरान वायुमंडलीय दाब में भी बदलाव आता है, जिससे हवा गति, वायुगति जो मौसम प्रणाली को तेज या धीमा कर सकती है पर असर पड़ता है। तेज़ हवाएँ समुद्र‑तट के पास तूफ़ान के रूप में विकसित हो सकती हैं, जबकि अंदरूनी क्षेत्रों में हल्की हवा से बारिश का क्रम धीमा हो जाता है। इन परिवर्तनों को ट्रैक करने से आपातकालीन सेवाएँ और कृषि‑कार्यकर्ता दोनों ही अपनी तैयारियों को बेहतर बना सकते हैं।
इन सारे पहलुओं को देखते हुए, मोनसून सिर्फ बारिश ही नहीं, बल्कि एक जटिल पर्यावरणीय प्रणाली है जो जल‑स्रोत, मौसम‑पूर्वानुमान, बुनियादी ढाँचा और लोगों की दैनिक ज़िन्दगी को आपस में बाँधती है। जब आप नीचे के लेखों को पढ़ेंगे, तो आप पाएँगे कि कैसे डार्जिलिंग, हिमालयी प्रदेश जहाँ भारी बारिश से लैंडस्लाइड की घटनाएँ हुईं जैसी परिस्थितियाँ राष्ट्रीय स्तर पर नीति‑निर्माण को प्रभावित करती हैं, और कैसे विभिन्न शहरों में बाढ़‑रोकथाम के उपाय लागू किए जा रहे हैं।
आगे आने वाले लेखों में आप देखेंगे कि मानसून के विभिन्न आयाम—बारिश के पैटर्न, बाढ़ जोखिम, कृषि‑प्रभाव, और मौसम‑विज्ञान की अद्यतन जानकारी—कैसे एक-दूसरे से जुड़े हैं और किन कदमों से आप इन प्रभावों से बचाव या लाभ उठा सकते हैं। तो चलिए, इस विस्तृत संग्रह में डुबकी लगाते हैं और अपने आसपास के मौसम को बेहतर समझते हैं।