कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) को समर्थन देकर जम्मू-कश्मीर में नई सरकार के गठन का रास्ता साफ कर दिया है। उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री के पद के लिए प्रत्याशी बनाया गया है। कांग्रेस के नेताओं से बातचीत के बाद, यह फैसला किया गया और सहयोग की चिट्ठी NC को सौंपी गई। इस गठबंधन का मुख्य उद्देश भाजपा का विरोध करने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के लोगों के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है।
उमर अब्दुल्ला – कौन हैं और क्यों महत्वपूर्ण?
उमर अब्दुल्ला का नाम सुनते ही कई लोग जामिया मिल्त‑इ‑इंसाफी (J&K) के बारे में सोचते हैं। वह सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि कश्मीर की राजनीति में दो दशकों से ज्यादा समय तक सक्रिय शख्सियत रहे हैं। अगर आप उनकी कहानी को समझना चाहते हैं तो नीचे दिए गये बिंदु पढ़िए।
राजनीतिक शुरुआत और जामिया मिल्त में भूमिका
उमर का जन्म 1963 में जम्मू‑कश्मीर में हुआ था, जब उनका पिता शहीद महबूब उल्ला ने इस राज्य की राजनीति में कदम रखा। बचपन से ही उमर को राजनीतिक मीटिंग्स और चुनावी लड़ाईयों में देखा गया। 1996 में उन्होंने पहली बार विधानसभा का चुनाव जीता, तब से लगातार कई बार जीत कर अपना दावेदार बनाया।
2002 में वे जामिया मिल्त के नेता बने और पार्टी की दिशा तय करने वाले मुख्य चेहरा बन गए। उनका सबसे बड़ा काम था पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना और कश्मीर के मुद्दों को केंद्र सरकार तक पहुंचाना। उमर ने कई बार सीधा संवाद किया, चाहे वह भारत का प्रधान मंत्री हो या विदेशियों के प्रतिनिधि। इस दौरान उन्होंने ‘डिप्लोमैटिक मोड’ अपनाया – यानी समस्या को हल करने की कोशिश में बातचीत पर ज़ोर दिया।
वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएं
2020‑की बाद से उमर अब्दुल्ला ने कई बार गठबंधन की बात कही, लेकिन उनका मुख्य फोकस फिर भी जम्मू‑कश्मीर के विकास पर रहा है। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरी सृजन को प्राथमिकता दी। हाल ही में उनके द्वारा शुरू किए गए ‘स्किल्स फ़ॉर ज्यूनीयर’ प्रोजेक्ट ने हजारों युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण दिया है।
वर्तमान राजनीति में उमर का असर अभी भी स्पष्ट है। उन्होंने कई बार केंद्र सरकार से अधिक स्वायत्तता की मांग की, पर साथ ही शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सहयोगी आवाज़ें भी उठाईं। उनकी शैली अक्सर ‘संतुलन’ कहलाती है – एक तरफ स्थानीय भावनाओं को समझते हुए, दूसरी ओर राष्ट्रीय हितों को नहीं भुलाते।
भविष्य में क्या हो सकता है? कई विश्लेषकों का मानना है कि उमर अब्दुल्ला अगर सही गठबंधन बना पाए तो कश्मीर की राजनीति में फिर से स्थिरता आ सकती है। उनका नेटवर्क अभी भी काफी बड़ा है, और युवा वर्ग उनके विचारों को सुनने के लिए तैयार दिख रहा है।
संक्षेप में कहा जाए तो उमर अब्दुल्ला सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि जम्मू‑कश्मीर की राजनीति का एक स्थायी हिस्सा हैं। उनका सफ़र कई उतार‑चढ़ाव देख चुका है, पर अभी भी वह आगे बढ़ते रहने के लिए तैयार दिखते हैं। अगर आप कश्मीर की राजनीतिक तस्वीर को समझना चाहते हैं तो उमर अब्दुल्ला की कहानी पढ़नी ज़रूरी है।